एक शकुन
एक शकुन था, अब वो ना रहा।
एक जनून था, अब वो ना रहा।
हम जलते रहे चिराग की तरहा
हमारा रूतबा, अब वो ना रहा।
इस चका-चोंद जिन्दगी मे
हमारा फलसफा, अब वो ना रहा।
दर्द कब ना था, जो अब ना रहा।
हम तो खुद ही दर्द मे थे
अब वो, मर्ज ही ना रहा।
फर्ज क्या था यहा अपना
हमें ही श्याद, वो याद ना रहा।
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हमने चुकाया जो हिसाब
पर हम उसके कर्जदार ना थे।
आज बीत गया वो कल
जिस कल मे आज हम ना थे।
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बीते हुये पल को तु
सभाल के रखेगा कब तक।
आज जो है, वो तेरा है
तु उसे ही सभाल कर रखेगा कब तक।…
* Swami ganganiya *