वफ़ा
अहल -ए- ‘इश़्क की ज़ुबाँ नज़रों की होती है
सोज़ – ए- एहसास नज़रों से बयाँ होती है ,
माश़ूका की निगाहों में जज़्बातों का समंदर लहराता है ,
आश़िक इस समंदर में डूब सा जाता है ,
वफ़ा के मोती की जुस्तजू में गहराई में उतरता जाता है ,
तो कभी बेवफ़ाई की चट्टानों से टूटकर बिखर सा जाता है ,
वफ़ा वो नायाब मोती है जो बड़ी मुश्किल से मिलता है ,
श़िद्दत- ए – मोहब्ब़त का सिला चंद नसीब वालों को हासिल होता है ,