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17 Jul 2021 · 1 min read

वफ़ाओं के मन्ज़र बदलते रहे

122 + 122 + 122 + 12
वफ़ाओं के मन्ज़र बदलते रहे
हमेशा ज़हर ही उगलते रहे

न कटटरपना छोड़ पाए कभी
इबादत में रब को ही छलते रहे

न जाने किये ज़ख़्म गहरे कहाँ
हवा में कई तीर चलते रहे

जिन्हें ग़ैर समझे, किया क़त्ल हाय!
यूँ नापाक मन्सूबे पलते रहे

अभी वक़्त है चेतिये दोस्तो
उन्हें प्यार कर जिनसे जलते रहे

•••

2 Likes · 2 Comments · 427 Views
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