वक़्त! वक्त पर
सुबह से शाम होती है ,फिर घना अंधेरा
होता है।
वक्त! वक्त पर न तेरा होता है ,न मेरा
होता है
जिंदगी के भागमभाग में वक्त मिलता
कहाँ है,
अधूरी नींद के बाद ,बमुश्किल से सवेरा
होता है।
वक्त! वक्त पर न तेरा होता है ,न मेरा
होता है।
जिंदगी कभी-कभी बड़ी बेजान सी लगती है।
ख्वाहिशें मेरी मुझसे ,अनजान सी लगती हैं।
जीवन मे अक्सर ,परेशानियों का डेरा
होता है।
वक्त! वक्त पर न तेरा होता है ,न मेरा
होता है।
आदमी खुद को खुद के पास, बड़ी
मुश्किल से पाता है।
अजीब बात है कि ,खुश रहने की दुआ
दिल से पाता है।
गम वो भी देता है ,जो सिर पे हाथ फेरा
होता है।
वक्त! वक्त पर न तेरा होता है ,न मेरा
होता है।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी