वक़्त भी है ,कैसा बादशाह
वक़्त भी है ,कैसा बादशाह
न रोके किसी के ,रुके
रोकना जो चाहे औंधे मुँह गिरे
वक़्त है ऐसा बादशाह
मुट्ठी कर के बंद रोकना मैं चाहूँ,
मिलन की बेला समेटना मैं चाहूँ,
ये चले चलता रहे ,इक न सुने
वक़्त है ऐसा बादशाह
दुख में रहूँ, ये काटे न कटे
मेरे रुदन से इसे फ़र्क न पड़े
चाहूँ क्षण में गुजरे इक सदी,
पर ये लम्हा लम्हा कर ही कटे
इक बात वक़्त की है भली,
कोई रिश्व्त न इसके आगे चली ,
दुख और सुख पर न किसी की रसूखदारी,
वक्त है ऐसा बादशाह
प्रक़ति भी वक़्त की जद में रहे,
वक़्त से ही हर शै चले ,
ए वक़्त तुझे लाखों सलाम,
ए वक्त तुझे कोटि कोटि प्रणाम
हे ईश्वर
तू भले वक़्त से है परे ,तुझे न कोई फर्क पडे,
हमारा वक़्त तो कालगत है,
न हमें यूँ तड़पा अमृत का प्याला दे दे ज़रा
वक़्त रहते ही
दीपाली कालरा