वक़्त खुद को कभी दिया ही नहीं
वक़्त खुद को कभी दिया ही नहीं
ज़िन्दगी का लिया मज़ा ही नहीं
काट दी ज़िन्दगी अकेले ही
मीत तुम जैसा फिर मिला ही नहीं
क्यों न दे ज़िन्दगी सज़ा मुझको
जब खताओं की इंतहा ही नहीं
दिल के इतने करीब रहते हो
दूरियाँ कर सकीं जुदा ही नहीं
दिल जलाया बहुत जमाने ने
नाम तेरा लिखा मिटा ही नहीं
थी कमी अपनी ही लकीरों में
कोई अपना यहाँ दिखा ही नहीं
जन्मों जन्मों का अपना नाता था
तोड़ कोई उसे सका ही नहीं
ज़िन्दगी लेनदेन है साहिब
कैसे पाओगे जब दिया ही नहीं
‘अर्चना’ दीप सी रही जलती
पर अँधेरा कभी गया ही नहीं
10-08-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद