वक़्त के पास भी वक़्त न रहा
कविता बस कुछ ऐसे ही कोई अन्यथा ना ले मैं शिर्डी के रूट पर कुछ दोस्तो से मिलना चाहता था जो कहतें आप आओ पर अब किसी वजह से मुलाकात नहीं होगी उनसे तो पेश है मेरी यह कविता उन दोस्तोँ के लिये बस के कटाक्ष भर है आजकी जिंदगी की सच्चाई पर
वो कहतें आओ कभी मिलों क्यों लगे हो कतराने में
चार यार बैठे कही मिल जायेंगे हम जो बतियाने में
दिल करें तो कभी भी मिल जाना इंतजार रहेगा हमें
आना तशरीफ ले आना कंभी तू हमारे ग़रीबखाने में
अब जो वक़्त आया उनसे मुलाकात का बोले हम जो
जवाब आया उनसे की फुर्सत नहीं हमकों जमाने में
वो दिन और थे जब तुमको हम बुलाते थे प्यार से भी
अब टाइम बदल गया वक़्त नही हाले दिल सुनाने में
हंसकर मुलाकात होगी व्हाट्सप पर आ जाना तुम
कहाँ कितने पैसे लगे ये जूम डाउनलोड करवाने में
मुआफ़ी चाहते आप मिलो दूर चलकर आये मियाँ
पर हम परेशान की रहे तुमको जो हम उकसाने में
अब नहीं बुलाएंगे घर पर किसी को हम बात यही
वक़्त के पास भी वक़्त न रह गया घर के बुलाने में
हमदर्द