” ——————————————————— वक़्त के खजाने से ” !!
ख़्वाब कई बुन डाले , खुशियों के मुस्काने से !
कुछ तो केश हो ही गये , वक़्त के खजाने से !!
रिश्ते तो बने बिगड़े , एक ही धरातल पर !
स्वार्थ खूब फूला फला , प्यार के बहाने से !!
नेह का निमंत्रण नहीं , अश्लीलता हवाओं में !
हो सुरभित यहां कलियां , खुशबू के ठिकाने पे !!
मस्ज़िद में अजाने हैं , औ घंटियां बजे मंदिर !
मन की खाई कैसे पटे , अब धर्म के मुहाने पे !!
बूढ़े माँ बापू यहां , अजनबी से लगने लगे !
घरवाली लगे प्यारी , रिश्तों के निभाने में !!
नेताओं का जमघट है , देशभक्त मिलते नहीं !
है जनता बनी मोहरा , बस कुर्सी हथियाने में !!