वक़्त कहाँ मुट्ठी में था
वक़्त कहाँ मुट्ठी में था
मैं भी कुछ जल्दी में था
सुख माँ की गोदी में था
एक नशा लोरी में था
वैसा जादू अब है कहाँ
जो माँ की बोली में था
पहले कश्ती तूफ़ाँ में
फिर तूफ़ाँ कश्ती में था
उसकी चुप्पी का कारण
राज़ निहाँ माज़ी में था
मुझसे बेहतर सारे थे
मैं फिर किस गिनती में था
वही बिका चौराहों पर
जो अपनी मस्ती में था
पहले नफ़रत फैली थी
फिर धूआँ बस्ती में था
होनी थी या अनहोनी
सब रब की मर्ज़ी में था
– डॉ आनन्द किशोर