” —————————————- वक़्त आजमाना चाहता है ” !!
वो कहाँ किसी की मानता है !
वक़्त आजमाना जानता है !!
झण्डे , नारे , जोश ,जनसमूह !
नेता ठगने की ठानता है !!
नये नये वादे , इरादे हैं !
यहां हर कोई बखानता है !!
सोच है स्वतंत्र है , समानता !
संविधान की यह महानता है !!
साये आतंक के दिखने लगे !
आज कौन किस की मानता है !!
बलिदान के चर्चे करते रहे !
राजनीति यहां अज्ञानता है !!
झूंठ है फरेब है पसरा सा !
ठगने की मन क्यों ठानता है !!
खुसबू बिखेर दें आसमां में !
भेद गर भूले समानता है !!
बृज व्यास