व्यावहारिक सत्य
कुछ समझ में नहीं आता क्या गलत है?
क्या सही?
सही को गलत सिद्ध किया जाता है,
और गलत को सही,
अब तो यही लगता है, शक्तिसंपन्न यदि गलती करे,
फिर भी उसे सही करार दिया जाता है,
जबकि शक्तिविहीन निरीह के सत्याधार को भी
समूह मानसिकता के चलते झुठला दिया जाता है,
वर्तमान युग में सत्य की परिभाषा द्विअर्थी हो गई है,
प्रतिपादित सत्य वह है, जो उसके
अनुयायी विशाल जनसमूह को मान्य है,
अकाट्य सत्य भी बहुमत के अभाव में
सिद्ध असत्य अमान्य है,
‘सत्यमेव जयते’ वचन शक्तिविहीनता, प्रतिबद्धता एवं बलिदान के अभाव में धुंधला पड़ गया है,
कालचक्र के बदलते संदर्भो में अपनी व्यावहारिकता का प्रमाण सिद्ध करने में असफल होकर रह गया है।