व्यापारी राजा
व्यापारी राजा!
हे भारतीय मन मेरी बात
ध्यान से सुनना।
चाहिए ग़र बदलाव विकास संग
तो नव स्वप्न सब बुनना।
शब्द ‘व्यापारी राजा’ से क्यों
हम संशय में पड़ जाते हैं?
व्यापारी राजा तो अपने देश को
नित नव आयाम दिलाते हैं।
‘व्यापारी’ तो हम आप भी हैं
कोई थोड़ा कोई ज्यादा।
पर क्या हममें देश भक्ति नहीं है
या देश प्रेम है आधा।
न करो व्यापारी राजा को खड़ा
यूं बीच संदेह कटघरा।
सशक्त ऊर्जस्वित विकसित देश को
वो पूर्ण लग्न से है बना रहा।
युवा शक्ति मेरे देश की भला क्यों जाएगी परदेश
जब व्यापार संग सम्मान मिलेगा जल्द अपने देश।
नहीं व्यापारी राजा ,वो तो हैं राष्ट्र योगी।
करता राष्ट्र प्रगति हेतु वो करता है जो भी।
अस्वच्छता, कन्या भ्रूण हत्या या बलात्कार।
इन सबको खत्म करने हेतु निकाली है तलवार।
नव राष्ट्र के परिवेश पर्यावरण को
इसने मेहनत से नवाज़ा।
फिर न जाने किस भाव में है
व्यापारी यह राजा।
जब तक नहीं निकलेंगे हम
खुद सोच के पिछड़ेपन से।
संविधान रहेगा यूंही बिलखता,
खुद के सौतेलेपन से।
भाषा संस्कृति की विरासत को है इसने चमकाया
आओ करें खुद पे गर्व कि व्यापारी राजा पाया।
माना हमें कुछ कष्ट हुआ पर बदलाव तो आया।
क्या बिना दुख दर्द कष्ट के तुमने सुगम बदलाव पाया।
पूर्व राजाओं के लिबास धवल थे
और रूह थी गंदी।
जो प्रगति पाई पिछले तीन सालों में वो
इतने वर्षों तक थी मंदी।
किसी ने हाथ से थप्पड़ मारे, दोनों हाथों से लूटा।
किसी ने आम आदमी बनकर झाड़ू से सब समेटा
बिलखते रोते चेहरों पर है अब खुशी की।
व्यापारी राजा ने तलवा चाट प्रथा हटाई।
हे सियासत देवी जो ये सुदिन है दिया,
करे नीलम सादर नमन और शुक्रिया।
नीलम शर्मा