व्याकुल परिंदा
मैं हूं एक व्याकुल सा परिंदा
जिसे मंजिल छूने की बेताबी है
मैं ऊंचे आसमानों का बाज हूं
मुझे बस पिंजरे से निकालो
मेरे पंखों को आजाद करो
शिखर छूने की मुझे बेताबी है
मैं ऊंचे आसमानों का बाज हूं…
मुझे अपना क्षमता मालूम है
मुझे अपना ठिकाना मालूम है
मुझे अपना रास्ता भी मालूम है
मुझे बस आजाद करो तुम…
मैं ऊंचे आसमानों का परिंदा हूं
मुझमें कुछ नादानी कुछ बचपना है
मुझमें कुछ भय है और कुछ त्रास है
मैं कुछ कमजोर हूं कुछ आसक्त हूं
जंजीरों को तोड़ो मेरे पंखों को छोड़ो
मैं ऊंचे आसमानों का परिंदा हूं…
मुझमें अपार शक्ति अपार हिम्मत है
मेरे भीतर बहुत सारी संभावनाएं है
फिर भी मैं इस पारंपरिकता रूपी
इन जंजीरों को तोड़ नहीं सकता हूं
अभी आसमानों में उड़ नहीं सकता हूं…