व्यवहारिक नहीं अब दुनियां व्यावसायिक हो गई है,सम्बंध उनसे ही
व्यवहारिक नहीं अब दुनियां व्यावसायिक हो गई है,सम्बंध उनसे ही मधुर हैं जिनसे मुनाफा अधिक है।
दिलों की जगह ले ली है अब स्वार्थ की दुकानों ने,हर रिश्ता अब तय होता है लेन-देन के दामों ने।।
पहले हंसी-खुशी थी घरों में, प्यार भरा माहौल था,अब हर चेहरे पर छाई है, स्वार्थ का एक काला धुंधला।
पहले दोस्ती थी अनमोल, रिश्ते थे बंधन सच्चे,अब हर रिश्ता लगता है, मात्र एक व्यापारिक सौदे जैसा।।
पहले मददगार थे लोग, दुःख में देते थे सहारा,अब मुश्किलों में अकेले हैं, सबकी यही है दुहाई।
पहले प्यार था ईमानदार, दिलों में बसता था अपनापन,अब प्यार भी बिकता है बाजार में, जैसे कोई सामान।।
पहले सच बोलते थे लोग, झूठ से थी उनको नफरत,अब झूठ बोलना सीख लिया है, हर किसी ने चालाकी से।
पहले इंसानियत थी सबसे बड़ी, सम्मान करते थे बुजुर्गों का,अब पैसा है सबसे बड़ा, सब झुकते हैं दौलतमंदों के आगे।।
कहाँ गया वो प्यार सच्चा, वो दोस्ती का रिश्ता,कहाँ गई वो दयालुता, वो इंसानियत का किस्सा?
यह व्यावसायिक दुनिया है, जहाँ सब कुछ बिकता है,रिश्ते भी बिक जाते हैं, पैसों के इस भूकम्प में।।
काश फिर से लौट आये वो दिन, जब दुनिया थी प्यारी,जब रिश्ते थे अनमोल, जब इंसानियत थी सबसे न्यारी।
यह व्यावसायिक दुनिया है, जहाँ सब कुछ है ढोंग,आओ मिलकर बदलें हम, इस दुनिया को फिर से अपनी रंग।।