व्यथा
ईंटों की किस्मत भली जो माथे पर लदी गयी,
गोद में आने को बच्चा कुनमुनाकर सो गया।
बहुत भार था डलिये में, रूह तक रौंदी गयी,
बाबू ठेकेदार इसे चन्द सिक्कों में तौल गया।
मेहनत और करीने से बुनियाद है बाँधी गयी,
पसीना उनके चूल्हों में ईंधन देखो झौंक गया।
घर की भीतों में तस्वीरें मालिक की टाँगी गयी,
मजदूरों के हाड़ से जाने मांस कहाँ है खो गया।
बन चुके घर की चाबी जिनकी थी सौंपी गयी,
कामगारों को देख साहब का कुत्ता भौंक गया।