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29 Jul 2018 · 1 min read

व्यथा

सिमिट रहा आँखों में है,
और अश्कों में डूब रहा,

आज मोहब्बत की नगरी में,
कोई आशिक़ गाता घूम रहा।

बेंच रहा हूँ दर्दे मोहब्बत
कोई लेकर मुझ पर उपकार करे,

अर्द्ध सत्य जीवन की गाथा,
कोई तो आकर पूर्ण करे।

यह तृष्णा अमिट मिटा देगी,
कर तृप्ति का संहार,

अगर शीघ्र उपचार मिला न,
तो तन प्राण जायेगा हार,

चीख -चीख कर ऊंचे स्वर में,
क्या गाता खूब रहा?

वह करूणा की करुण बंदना,
गाता दर्द भरे स्वर की लय में,

जैसे उसने दर्द समेटा,
अपने पूरे जीवन भर में,

दर्द बेंचता सुख की खातिर,
करे महोब्बत का सौदा,

माटी का ही सही मगर कोई ,
उसको भी मिले घरौंदा,

चलता जाता गाता फिरता
कोई कुछ तो मोल करे,

कोई समझे मेरी मज़बरी,
कोई हालातों पर गौर करे,

नंगे पैर पगा सर बस इतना ही ,
संभाल रहा,

जाने कब से इस पीड़ा को ,
अपने मन में पाल रहा,

बढी निराशा की खामोशी,
अब मन उसका ऊब रहा।

सिमिट रहा आँखों में है,
और अश्कों में डूब रहा,

सर्वाधिकार सुरक्षित 29/07/2018 कविता द्वारा राजेन्द्र सिंह

Language: Hindi
566 Views
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