व्यथा हमारी दब जाती हैं, राजनीति के वारों
जन जन के पीड़ा को मन ने गंतव्य निधि में पाया हैं
वाम पंथ धर्म अपनाते नेताओं को हमने पाया हैं
सहादत पर वोट मांगते, जनता के दरबारों से
व्यथा हमारी दब जाती हैं राजनीति के वारों से
शीत पवन के हलकोरे में, बम का धुआँ उड़ता हैं
प्रहरी के धमनी-धमनी में, जोश भाव उमड़ता हैं
दो हफ्ते तक हमें जगाती, अमर बलिदानी नारों से
व्यथा हमारी दब जाती हैं, राजनीति के वारों