व्यथा पेड़ की
एक पेड़ था सुंदर वन में जिस पर था उल्लू का डेरा ।
इसी वजह से कोई पक्षी नहीँ लगाता पेड़ का फेरा ॥
दुःखी बहुत था पेड़ सोचकर किसको अपनी व्यथा सुनाएं ।
बने सभी का आश्रय वो भी ऐसा कुछ वो क्या कर पाये ॥
हार गया वो सब कुछ कर के अब उसने मरने की ठानी ।
छोड़ दिया अब उसने खाना छोड़ दिया अब उसने पानी ॥
कुछी दिनो में सूख गया वो नहीँ बैठते उल्लू उस पर ।
मन ही मन वो खुश होता था उल्लू नहीँ बैठते मुझ पर ॥
एक दिन एक लकड़हारे की नज़र पड़ी जब सूखे पेड़ पर ।
काटा पेड़ बना दी कुर्सी अच्छी अच्छी सुंदर सुंदर ॥
सभी कुर्सियां पहुँची संसद और बनी संसद की शोभा ।
विजय बताये व्यथा पेड़ कि सुनकर पेड़ बहुत है रोता ॥
जान गँवाई जिसके कारण वही आज भी मुझपर बैठा ।
जान गंवाई जिसके कारण वही आज भी मुझ पर बैठा ॥
विजय बिज़नोरी