” व्यथा पेड़ की”
” व्यथा पेड़ की”
भंडार हूं मैं ऑक्सीजन का
हरियाली फैलाता हूं चहूं और
कोरोना का कारगर टीका
महता मेरी तूं समझ इन्सान,
प्रकृति की गोद से निकला
बारिश की बूंदों से पला बढ़ा
सूरज की किरणों ने भरा पेट
आज तूने मेरा किया अपमान,
पथिक को मैं छावं में सुलाता
भुखे प्राणी को फल-फूल खिलाता
समीर चले तब मंद मंद लहराता
नीचे मेरे मां धरती उपर नीला आसमान ।