व्यथा औरत की
संभालूंगी मैं खुद को खुद कोई कोशिश नहीं करना
मुझे मजबूर इतना तुम बदलने पे नहीं करना।
गरीबी होती अपने आप में खुद एक बीमारी
इसे तुम दूर करने की जद्दोजहद नहीं करना।
दरिंदे कर रहे हैं मासूमों से क्यूँ ये हैवानी
सजा ए मौत से कम सजा मुकर्रर नहीं करना।
मांँ तू भी तो औरत है बचाना लाज औरत की
ऐ माँ तुझसे गुजारिश है बेटे पैदा नहीं करना।
पड़े हैं कम नहीं मुझ पर थपेड़े मैं भी औरत हूँ
नारी है महान मशहूर ये जुमला तुम नहीं करना।
रंजना माथुर
दिनांक 17/04/2018
जयपुर (राजस्थान)
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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