व्यंग
बेटा बेटा ना रहा, बड़ा हुआ ना बाप
दो धारा में बट गया, अहं अहं में आप।
भौतिकता की चाह में, रिश्तो को नहीं तोल
धन अर्जन के वासते, काहे खोलें पोल।
-विष्णु प्रसाद’पाँचोटिया’
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बेटा बेटा ना रहा, बड़ा हुआ ना बाप
दो धारा में बट गया, अहं अहं में आप।
भौतिकता की चाह में, रिश्तो को नहीं तोल
धन अर्जन के वासते, काहे खोलें पोल।
-विष्णु प्रसाद’पाँचोटिया’
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