” व्यंग क शालीनता “
डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
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असंख्य लोकनिक सानिध्य हमरा लोकनि कें प्राप्त भेल अछि ! अधिकाशतः लोकनि क दर्शन बुझु दिवा स्वप्न अछि ! यदा -कदा हुनकर अवलोकन एहि फेसबुकक विशाल रंगमंच होइत रहित अछि ! मुदा सब लोकनि विभिन्य भंगिमाक प्रदर्शन मे लागल रहित छथि ! कियो कवि छथि ..कियो लेखक ! कियो लिखबाक कला मे पारांगत छथि ! अधिवक्ता ,शिक्षक ,कलाकार ,चित्रकार ,संगीतज्ञ ,गायक ,व्यंगकार ,चिकित्सक आ अनेको गरिमामयी व्यक्तित्व क समावेश सं हम सब धन्य भ गेलहुं ! एहि सौर मंडल मे कियो ध्रुब तारा सदृश्य श्रेष्ठ छथि ..कियो समतुल्य सप्त ऋषि छथि..आ अनेको कनिष्ठ तरेगन क उपस्थिति सं फेसबुक क आकाश मे सब दिन बुझु प्रकाशदीप जरैत अछि ! सब लोकनि क अप्पन -अप्पन प्रकाश छैनि ! हिनके लोकनिक आलोक सं हमरालोकनि कें घनघोर तिमिर मे पथ क अनुमान लगैत अछि ! हिनका उचित सम्मान ,प्रतिष्ठा ,स्नेह आ उत्साह भेटबा क चाहि !इ व्यक्तिगत व्यंग क प्रहार नहि सहि सकताह ! आलोचना क विष पान करि नीलकंठ कथमपि नहि बनि सकताह ! हम इ नहि कहब जे व्यंग , आलोचना ,टीका -टिप्पणी इत्यादि नहि करू ! मुदा एकर रूप बदलय पडत ! Laughter is like medicine which must be applied with caution. Make it sure that you are laughing for yourself without targeting to the people . A leader who is always miserable,unhappy and frustrated is not at all fit to lead the organisation any more. I always see some of my friends and acquaintances react and write odd in the Facebook.It is found often in learned men also .They don’t stay in the fence of Decency……and…….Decorum which leaves the wrong impression on other friends. That is why I cultivated this gesture . I feel better to project myself as the clown so that nobody gets hurt . Whatever I write …it all related with my personal reaction and full of the irony . ” “व्यंग क प्रहार हेबाक चाहि ..अपने हंसिके आन कें हंसेबाक चाहिदुःख आन कें हम किया देबय इ ज्ञान हमरा सब दिन हेबाक चाहि!”
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डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखण्ड
भारत