व्यंग्य
लिखने को जब कुछ नहीं
लिखलो हास विलास
कहदो इससे श्रेष्ठ कुछ नही
अब और सृष्टि में खास
आड़े टेढ़े मुँह बिचका कर
पत्नी का परिहास उड़ाकर
अधिकांश कवि सम्मेलन सजाते
हास्य कला के नाम पर
क्या कहना क्या न कहना
सारी मर्यादा धूल चटाते
हँसना नहीं बुरा है भाई
मगर किसी की न करो बुराई
जो तेरी है बनी लुगाई
वो भी तो है किसी की माई।
उसको कितना सम्मान मिलेगा?
जब पति, पत्नी का अपमान करेगा।