व्यंग्य- सांढ सरीको ढेंक रओ है
हर कुई अपनी सेंक रओ है।
इते उते की फेंक रओ है।।
जाने माने कछ्छू नई।
गधा पढ़ारो रेंक रओ है।।
अपने मुंह मिट्ठू बन के,
मौआ-छोले की मेंक रओ है।।
गेंद-गड़ा की गेंद समझ के,
धरती-छुल्ला फैंक रओ है।।
तानसेन की नकल करत थो,
सांढ सरीको ढेंक रओ है।
अंधों मे कनवा राजा थो,
अब लुक लुक के देख रओ है।।
तीस-मारखाँँ समझे खुद को,
अपने सामने झैंप रओ है।।
फटे-पुराने उन्ना पहन के,
बड़ी बेशर्मी से रैंप रओ है।।
भगत बटेर का मरी है जबसे,
सीदुई गुल्ला फेंक रओ।
गाड़ी के नीचे चल कुत्ता ,
समझे गाड़ी खेंच रओ है।।
✍?? अरविंद राजपूत ‘कल्प’?✍?