‘व्यंग्य नेताओं पर ‘
बहुत हुआ अब व्यंग्य नेताओं पर,
अब व्यंग्य नीज पर होनी चाहिए |
जिस लोकतंत्र में, मालिक जनता हैं,
उसमें भ्रष्ट कैसे? नेता हैं |
छोड़कर उछालना किचड़ नेताओं पर,
थोड़ी अपनी भी गिरेबान झाकनी चाहिए |
जिस लोकतंत्र में,विकल्प नोटा(NOTA) हैं,
उसमें भ्रष्ट कैसे ? नेता हैं |
अगर नेता हमारा भ्रष्ट है ,बेइमान हैं ,
तो जनता में भी कौन-सी,इमान हैं |
बस !फर्क सिर्फ इतना-सा हैं,
वो करते घोटाला नोटों का |
हम करते घोटाला वोटों का |
संविधान की प्रदत शक्ति को,
जब हम खुद नहीं जानते |
तो नेताओं को भ्रष्ट कैसे?मानते |
वो तो हमें बस! दिग्भ्रमित कर,
अपनी उल्लु सीधा करते हैं |
और हम उनकी बातों में आकर,
बस! मूर्खता का पहचान दिलाते हैं |
फिर हम राग अलापते हैं ,
नेता हमारा भ्रष्ट है,चोर है |
अरे भाई! क्यों इतना शोर हैं ?
जब तेरी ही हाथ में बागडोर है |
—पवन कुमार मिश्र ‘अभिकर्ष ‘
©®