व्यंग्य क्षणिकाएं
1
अध्यक्ष बनो
संरक्षक बनो
मार्ग दर्शक बनो
बात एक है..
टिकट कट गया..
अब
गंगा नहा लो..।
2
वयोवृद्ध
….
मुगालते की सुपर डिग्री
आशीर्वाद की जिल्द
और पन्ने सभी कोरे
जीर्ण क्षीण काया
हे दद्दा!
सब आपकी माया।।
3
रातभर खाँसते रहे
खुद को दाद देते रहे
कल किसी कार्यक्रम
के, जनाब
सदर-ए-मोहतरम थे।
4
राजनीति
कैसी भी हवा हो
उनके
मुताबिक चलती है
प्रजा तो धूप है
निकलती है
और
खपती है।
5
चुनाव
नेता और बीबी को
सब खुद चुनते हैं
चुनने के बाद
ये
किसी की नहीं सुनते।
सूर्यकान्त द्विवेदी