वो है संस्कृति
जिस बालिका को मेने जनम दिया,
वह है संस्कृति वह है संस्कृति वो संस्कृति है,
वो चंचल है मधु गुंजन वन की गुंजरी है,
बाल सुलभ तितली कृति है,
वह है संस्कृति वह है संस्कृति वो संस्कृति है।
वह अटल रहे गिरी राज बने ,
वह सरल रहे मृदुभाष बने,
गंगा-यमुना सी अमृति है,
वह है संस्कृति वह है संस्कृति वो संस्कृति है ।
वह ज्योति में रविचंद्र बने,
वह औषधि में मंदार बने,
उमा की पुरस्कृति है,
वह है संस्कृति वह है संस्कृति वो संस्कृति है।
मैं विनती करु माँ कालीका से,
तु दया करना उस बालिका पे,
वह तेरी ही तो आश्रिती है,
वह है संस्कृति वह है संस्कृति वो संस्कृति है।
— उमा झा