वो हसीन पल
वो एक हसीन पल
जिसको सोचा था कभी सपनों में
ढूँढना चाहा था जिसको अपनों में
कल्पनाओं में चित्र कल्पित करता था
छायाचित्र मिटाता था कभी बनाता था
यथार्थ में जिसे सदा खोजता रहता था
जो अब तक दूर थी मेरी नजरों से
क्या वो चन्द्रमुखी मुख दिख पाएगा
क्या हुस्न का पिटारा वो खुल पाएगा
मृगनयनी नयन कभी नजर मिलाएंगे
घने गेसुओं की छाँव कभी मिल पाएगी
नशीली नजर से नजर कभी टकराएगी
कब दर्शन होंगें चाँद के मुखड़े के
भोली सी सूरत और सादगी मूरत के
नागिन सी बल.खाती छाती के उफानों से
मेघों से उमड़ते उभरते नवयौवन से
प्यासे सुर्ख गुलाबी अधर रसपान हेतु
अधरों से अधर कभी कहीं मिल पाएंगे
सुन्दरता की इस अदभुत परिकल्पना को
यथार्थ का कभी क्या सहारा मिल पाएगा
तभी अकस्मात घटित हुआ एक घटनाक्रम
जिसको सपनों अपनों परिकल्पनाओं में
कभी सोचा ढूँढा और खूब खोजा था
सुन्दरता की उस खूबसूरत सूरत मूरत को
अंकित देखा था फेसबुक अकाउंट पर्
मन हर्षित हुआ दिल आचम्भित हुआ
उस देख यौवन की भरी हुस्न पटारी को
मित्रता का प्रस्ताव स्वीकार हुआ
दिल खुशियों से बागमबाग हुआ
मोबाइल नंबर का आदान प्रदान हुआ
कोयल सी रसीली मधुरतम वाणी जब श्रवण हुई
दिल बहुत पुलकित हुआ मन हर्षित हुआ
पैर टिकने न पा रहे थे धरातल पर
प्रेम इजहार जो दोनों ध्रुवों से हो गया था
यथार्थ में था या स्वपन में था पर
जो भी था घटित हुआ असल म़े था
यह पल सचमुच बहुत हसीन बेहतरीन थे
सरिता की धारा से शान्त शालीन आसीम थे
सुखविंद्र सिंह मनसीरत