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14 Jun 2020 · 1 min read

वो सुबह

उस रात आखिर थक हार के
डाल दिए सब हथियार
बुझा दिए उम्मीद के सब दिए
और दिया खुद को मार

मालूम न था मौत कैसी होती है
उस से कभी मिली जो नहीं
बस यही सोचा शायद खिल जाए वो बगिया
जिंदा रहते जो खिली ही नहीं

यही सोच कर दिया जीवन का अंत
शायद उस पार है सुंदर मधुरिम बसंत

किंतु यह क्या?? मौत तो मुझे छू भी न सकी
देह से अलग हो कर भी मैं तो रही वही की वही

जी चाहा एक प्याली चाय बना के पिउं
मगर हाथ खाली हवा में घूम गए
जी चाहा गले लगा लूं उस रोते हुए प्यारे को
मगर देह के आयाम बस हवा को चूम गए

घूम रही हूं इधर उधर बेमकसद बेतरतीब
मौत ने राहत न दी छीन ली मुझ से तदबीर

मेरे प्यारे सुनो मुझे , अगर सुन सको
जीवन है अनमोल कभी नष्ट न करना इसको
हालात ऐसे वैसे जैसे भी हों
बस जिंदा रहना, क्योंकि जिंदा रह कर ही बदल सकोगे हालात को…

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 429 Views
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