** वो साइकिल **
वो साइकिल
//दिनेश एल० “जैहिंद”
चावल से सफेद कंकड़ बीनते हुए रामदीन की पत्नी ने कहा- “बीस रूपये दे जाते तो थोड़ी दाल व कुछ आलू मँगा लेती। चावल के साथ दाल और चोखा लगा देती।”
रामदीन ने आंगन से साइकिल बाहर निकालते हुए उत्तर दिया- “अरे, बीस रूपये क्या करोगी! छूटे नहीं हैं। सिर्फ चावल ही बना देना। शाम को बाजार करता आऊँगा।”
पत्नी रामदीन की बात सुनकर निरुत्तर हो गई।
कहीं पति के मन की दशा भी पत्नी से छुपी रहती है।
रामदीन जैसे ही चौखट लाँगा वैसे ही रज्जू बिटिया ने यह कहते हुए छोटी हथेली फैला दी- “बापू, पाँच रूपये दो ना। चाट वाला आएगा तो चाट खाऊँगी। रानी के बापू ने उसको दस रूपये दिए हैं। वह मुझसे दस का नोट दिखा रही थी।”
रामदीन ने सरासर झूठ बोला- “छूटे नहीं है बेटा। शाम को बाजार से तेरे लिए गोलगप्पे
ले आऊँगा।”
रज्जू ने कहा- “ठीक है बापू !” और कहती हुई गली में खेलने भाग ली।
बाप पर कैसी-कैसी मुसीबतें आती हैं, बच्चे भला कब जान पाते हैं। वे तो अपनी मस्ती में सने रहते हैं।
रामदीन साइकिल डगराता हुआ आगे बढ़ गया और अपने गमच्छे से पनियाई आँखों के कोर पोछता रहा।”
शाम को रामदीन देर से आया और आंगन में प्रवेश करते हुए चिल्लाया- ” रज्जू की माँ….., रज्जू की माँ…., अरे ओ रज्जू… रज्जू….!”
रामदीन की पत्नी कमरे से बाहर आंगन की ओर लपकी। देखा, उसका पति आज बहुत खुश है।
“ये ले…एक किलो दाल, पाँच किलो आलू
दो किलो बैंगन, एक किलो प्याज और ये चायपत्ती व चीनी।” राम दीन झोले से सब बाहर करते हुए पत्नी से पूछा- “रज्जू नहीं दिख रही !”
रज्जू ने तभी बाहर से खेल कर आंगन में आते हुए चिल्लाया-“बापू, मेरे गोलगप्पे… मेरे गोलगप्पे….?”
रामदीन ने रज्जू को गोलगप्पों का थैला दिया। रज्जू गोलगप्पे लेकर बाहर निकल गई।
रामदीन की पत्नी सारे सामानों को देखती और कभी राम दीन के मुँह को देखती। मगर उस साइकिल को नहीं देखती, जिसे लेकर उसका पति काम की तलाश में निकला था।
फिर तो उसने शक भरी आँखों से पूछा- “तुम्हारी साइकिल?”
रामदीन ने मायूस व बुझे स्वर में कहा- “वो… मैंने बेच दी।”
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दिनेश एल० “जैहिंद”
07/09/2020