वो सपने
देखु रात मे तो नज़र आते है
दिन मे देखु तो धूमिल सा हो जाते है
वक़्त के किसी पखवाड़े को पकडू
एक सँभालने मे सारे बिखर जाते है
वो सपने……
काली रात मे ना जाने क्या सिखाते है
चांदनी हो तो धूमिल सा हो जाते है
पिरो दू खुद को इन सपनो मे
एक पूरा करो तो लाखो टूट जाते है
वो सपने……
कभी प्यार तो कभी ख़ुशी का अहसास दिलाते है
दूर से देखो तो पास नज़र आते है
पकडू कैसे उनको कोसिस करता हू दिन रात
नज़र से वे दूर होते जाते है
वो सपने……..
मिले थे कुछ महीनों पहले एक अहसास से
ख़ुशी हुई पाकर एक नई जिंदगी को
क्या पता था वक़्त फिर घूमेगा लेकर अपना चाबुक
तोड़ दिया उनको सँभालते सँभालते
वो सपने…….