वो सच को हमेशा छुपाते रहे हैं।
गज़ल
122……122…..122…..122
वो सच को हमेशा छुपाते रहे हैं।
फ़कत उनके झूठे दिखावे रहे हैं।
ये वादे चुनावी हैं इनमें न आना,
हकीकत नहीं बस वे दावे रहे हैं।
ये दुनियां है इंसानी रिश्तों का मेला,
यहां लोग शदियों से आते रहे हैं।
है जिनका समर्पित सभी कुछ वतन को,
वतन के हमेशा चहेते रहें हैं।
हैं राहें कटीली है चलना भी मुश्किल,
गरीबों के पांवों में छाले रहे हैं।
तुम्हारा अगर साथ मिल जाए जिसको,
न फिर वो किसी के सहारे रहे हैं।
सभी से करो प्यार अपना बना लो,
कि प्रेमी हमेशा तुम्हारे रहे हैं।
……..✍️ प्रेमी