वो वंशी बजैया
ब्रज को लाला वो ब्रज को कन्हैया है।
माखन मिश्री चुरैया वो वंशी वारो है।।
नख गिरवर धारो वो ब्रज को बपैया है।
नंद को छोना यशोदा को नयन तारो है।।
ग्वाल बाल खेलन वारो वो नाग नथैया है,
गोपिन की चित चोर वो कनुआ कारो है।।
बलदाऊ को छोटो भैया वो गौ को चरैया है।
पूतना को काल वो तृणनावृत तारन हारो है।।
इंद्र को मान-मर्दन नख पर गिरवर धरैया है।
कंस को काल वो भक्तन प्राण आधारो है।।
श्रीजी को चाकर श्याम वो रास को रचैया है।
‘वृन्दावनी’ विनती करे वो मेरो ही सहारो है।।