वो लड़की
वो लड़की सबकुछ सहती है
पर मुँह से उफ्फ नहीं करती है
कुछ मीठे सपने लेकर के
आई अपने साजन के घर
और साथ सुहाने सपने के
वो लगी सजाने पिय का घर
सबकी परवाह उसे रहती
सबका रखती पूरा खयाल
दिनभर की सारी कामों से
हो जाती बेचारी निढाल
सबकी ख्वाहिश पूरी करती
रखती न शिकायत मन में कोई
परिवार की खातिर खुद की भी
खुशियों की न थी परवाह कोई
कुछ बात कभी हो जाए भी तो
हंसकर वो सबकुछ सह लेती
अपने साजन के डांट भी वो
प्यार समझकर सह लेती
उसके जीवन में खुशियों की
कोई भी कली न खिल पाई
अपनी किस्मत की दरारों को
भक्ति से भी वो न सिल पाई
उसके कर्म और बलिदानों को
कोई समझ नहीं पाया उस घर में
फिर भी सबको अपना वो मान
सेवा में लगी रही घर में
उसका दुख बड़ा है फिर भी वो
दिल बड़ा वो रखकर चलती है
परिवार एक कर रखती है
वो लड़की सबकुछ सहती है।
रिपुदमन झा ‘पिनाकी’
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक