*वो मेरी मांँ है*
वो मेरी मांँ है
मैं एक मांँगूं तो वो रुपये हजार देती है।
वो मेरी मांँ है जो सब कुछ सम्भाल लेती है।
उसने रखा है मुझको नौ माह पेट में अपने,
देखकर हैरान है सब उसे आज भी थकान न होती है।
वो मेरी मांँ है जो सब कुछ सम्भाल लेती है।।१।।
वो रोज जाग जाती है सुबह को चार बजे,
मुझे जगाये बगैर वो बिस्तर पर निहार लेती है।
वो मेरी मांँ है जो सब कुछ सम्भाल लेती है।।२।।
अपनी बाहों में न जाने कहांँ- कहांँ घुमाया उसने,
इतना सुकून तो ना कोई राज सवारी देती है।
वो मेरी मांँ है जो सब कुछ सम्भाल लेती है।।३।।
खुद गीले में सोकर मुझे सुखे में सुलाया उसने,
सारे सुर बेकार हैं ये उसकी लोरियांँ बता देती हैं।
वो मेरी मांँ है जो सब कुछ सम्भाल लेती है।।४।।
वो जाग जाती है अक्सर पूरी रात मेरे लिए,
कड़क गर्मी में अपने आंँचल की छाया देती है।
वो मेरी मांँ है जो सब कुछ सम्भाल लेती है।।५।।
मांँ को मत करो परेशां तुम अनजान बनकर,
माँ न हो तो फिर उसकी तलाश होती है।
वो मेरी मांँ है जो सब कुछ सम्भाल लेती है।।६।।
मैंने देखा है उन बिना माँ के बेसहारा बच्चों को,
मांँ न होने पर इन्हें दुनिया भगा देती है।
वो मेरी मांँ है जो सब कुछ सम्भाल लेती है।।७।।
आज नहीं है मेरी माँ मुझे एहसास है ये,
दुष्यन्त कुमार से माँ की यादें कहती हैं।
वो मेरी मांँ है जो सब कुछ सम्भाल लेती है।।८।।
मैं एक माँगू तो वो रुपए हजार देती है।
वो मेरी मांँ है जो सब कुछ सम्भाल लेती है।।