वो मुहब्बत है कहाँ
आजकल धंधा हुआ है अब इबादत है कहाँ
जो हमें नज़दीक लाये वो मुहब्बत है कहाँ
सिर्फ़ चाँदी के महल में आजकल मुजरा करे
जो ग़रीबों की सुने ऐसी अदालत है कहाँ
बिन दिए उपहार कोई काम अब होता नहीं
घूस के इस दौर से दफ्तर सलामत है कहाँ
है बढ़ी बेरोजगारी और महँगाई बहुत
जो चुनावों में किया वादा वो राहत है कहाँ
यूँ तो मैं उपकार ही करता रहा हूँ उम्र भर
पर न पूछो आजकल मुझसे अदावत है कहाँ
है सियासत ये खड़ी बस झूठ की बुनियाद पर
सच तो मैं कह दूँ मगर इसकी इजाजत है कहाँ
वो जमाना लद चुका ‘आकाश’ अब के दौर में
दर्द सबका बाँट लेने की वो चाहत है कहाँ
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 05/03/2022