वो मित्र बने ,वो सखा बने
आसान नहीं था करना
सबको साथ ले कर चलना
नित्य नयी बाधाओं के साथ उठना-बैठना
लेश मात्र भी कदम ना ठिठके उनके
वो खुद भी बढ़े
सबको साथ बढ़ाते भी गए
वो मित्र बने ,वो सखा बने
वो सच्चे मार्गप्रहरी बने
हृदयपुंज में सबके लिए स्थान रिक्त रखे हुए
सबका हाथ थामे वो बढ़ते रहे
चुनौतियां थी ,किला अभेद्य
वो चट्टानी हौसलों के साथ
हर लक्ष्य को भेदते गए
वो मित्र बने,वो सखा बने
वो सच्चे मार्गप्रहरी बने—अभिषेक राजहंस