वो भी क्या दिन थे …
वो भी क्या दिन थे …
कांटो से भरी जिंदगी
और ढेर सारे सपने
मगर साथ सारे अपने…
वो भी क्या दिन थे …
फटे कपडे होकर भी
पग- पग पर ठोकर भी
बहुत सारे अरमान …
वो भी क्या दिन थे …
नंगे पाव चलते ही
युंही कटता था रास्ता
लगता था प्यारा समाँ …
वो भी क्या दिन थे …
मिलजुलकर रहते थे
दिल की बात कहते थे
हर तरफ खुशियां ही खुशियां …
..
जाने कहा गये वो दिन ?
रिश्ते क्यूँ हुए सस्ते ….
हैवानीयत की तरफ
क्यूँ और कैसे हम मुड गये ?