वो बेफिक्र हो कर
वो बेफिक्र होकर के चलते रहे
और आस्तीनों में सांप पलते रहे
अगर देख लेते कभी गौर से
तो होता न यह हादसा जो हुआ
कभी आदमी दोष देता समय को
कभी कोसता है स्वयं देवता को
अगर पूछ लेते किसी और से
तो होता न यह हादसा जो हुआ
सबक सीख लेता जो बीते हुए से
भरे घट से या फिर कि रीते हुए से
अगर जान लेते उसी दौर से
तो होता न यह हादसा जो हुआ
अभी भी उसी राह से जा रहे हैं
वही गीत वो आज भी गा रहे हैं
न जीते अगर वो उसी तौर से
तो होता न यह हादसा जो हुआ
मगर शर्म उनको तो आती नहीं हैं
कोई रीत की बात भाती नहीं हैं
न जाते अगर अपने इस पौर से
तो होता न यह हादसा जो हुआ
अपनों से दूरी बनाकर चले हैं
गैरों की बस्ती बसा कर चले हैं
न होते अलग अपनों के झौर से
तो होता न यह हादसा जो हुआ