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4 Oct 2019 · 1 min read

वो बेचता है दिये!

वो बेचता है दिये,
खुद के नन्हे हाथो से,
उसका ये गढ़ा हुवा,
धूप, बारिश, छाँव में,
दुबका सा पड़ा हुआ।
आपकी इस दीपावली,
को जगमगाने के लिए।।
वो बेचता है दिये,

वो बेचता है दिये,
क्या अनोखा उसका,
है अपना ही फलसफा,
खुद अंधेरी कोठरी में,
जिसका है जीवन छिपा।
वही औरो के आंगन को,
झिलमिलाने के लिए।।
वो बेचता है दिये,

वो बेचता है दिये,
हर रंग के हर ढंग के,
नई आकृति में ढाल के,
अपनी वेदनाओं को दबा,
सपने नए नित पाल के।
खुशियों को रोशनी से,
हर घर सजाने के लिए।।
वो बेचता है दिये,

©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ०४/१०/२०१९ )

Language: Hindi
1 Like · 367 Views
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