वो बात अब नहीं जमाने में
वो बात नहीं अब जमाने में,
जो कभी हुआ करती थी;
वो हवाएँ अब नहीं चलती,
जो कभी चला करती थी।
जिंदगी मसरूफ थी तो क्या हुआ,
दिलो में प्यार हुआ करता था;
बातों में वो अहसास था,
जो दिलों को छुआ करता था।
अब वो दूरियाँ नहीं,
जो कभी फासला हुआ करती थी।
नज़र न आए कोई साथी,
तो घर तक पहुँच जाते थे;
पानी यहाँ पीते तो,
खाना वहाँ खाया करते थे।
नहीं इश्क की अब वो हसरतें,
जो आसमानों को छुआ करती थी।
नहीं है प्यार का वो जज्बा,
अ ‘हंस’ अब जमाने में,
अब तो साकी अलग मिलते हैँ,
यहाँ हर एक मयखाने में।
वो घर भी हमने देखा है,
जिसमें दो दीवारें नहीं हुआ करती थी।
सोनू हंस