वो बहुत याद आए
वो गली वो चौबारे
वो घर गांव सारे
वो सुकूं देने वाले
दरख्तों के साए
अचानक ही वो
बहुत याद आए ।
वो गांव की बोली
वो मित्रों की टोली
वो निश्छल से रिश्ते
वो गांव के किस्से
सुने और सुनाए
अचानक ही वो
बहुत याद आए ।
वो बहती हुई नहरें
वो फसलों की लहरें
वो अमराई की छांव
वो कुश्ती के दांव
लगे और लगाए
अचानक ही वो
बहुत याद आए ।
वो दादी वो नानी
वो पुरानी कहानी
खिली चांदनी में
सुनते थे ऐसे ही
बैठे बिठाए
अचानक ही वो
बहुत याद आए ।
वो अपने बेगाने
वो पूरे अधूरे
वो सपने सुहाने
दिन वो पुराने
ललचाए लुभाए
अचानक ही वो
बहुत याद आए ।
अशोक सोनी
भिलाई ।