वो बस सपने दिखाए जा रहे हैं।
ग़ज़ल
1222/1222/122
वो बस सपने दिखाए जा रहे हैं।
हकीकत को छुपाए जा रहे हैं।1
उन्हीं पर जम के बरसी है कृपा भी,
जो कुर्सी को बचाए जा रहे हैं।2
ये है कैसी तरक्की कुछ तो सोचो,
ये घर किस के गिराए जा रहे है।3
बहाना इक नया हर बार लेकर,
वो हम सबको लड़ाए जा रहे हैं।4
दिखाकर आंधियों का खौफ़ पंछी,
शज़र से अब उड़ाए जा रहे हैं।5
लड़ाने या भिड़ाने के लिए ही,
ये कौमी गीत गाए जा रहे हैं।6
जो नफरत के रहे ‘प्रेमी’ हमेशा,
वो अब भी प्यार पाए जा रहे हैं।7
………✍️ सत्य कुमार प्रेमी