वो बदल रहे हैं।
ऐ जिंदगी दो कदम तू भी तो चल हम कबसे चल रहे है।
ठहरी पड़ी है तू वक्त के जानें कितने लम्हे गुजर रहे है।।
कुरान की आयते जाने कबसे याद तो हम भी कर रहे है।
पर इनमे से एक भी समझ में आती नही बस रट रहे है।।
झुकी निगाहे उनकी बज्म में कितने सवाल कर गई है।
हम तो है रिश्ते में वैसे ही जैसे थे पर वो बदल रहे है।।
सियासत दानों ने एक दूसरे को गले मिलने न दिया है।
बंद कर दो लड़ाई मज़हब की जिसमे सब लड़ रहे है।।
दौलत की ये भूख जानें कैसे कैसे काम करवा रही है।
ये कैसे है इंसा जो मासूम बच्चों की तिजारत कर रहे है।।
ऐसा नहीं है कि उनमें कुव्वत नही है तुमसे लड़ने की।
पर है वो गरीब तेरे जुल्मों सितम पर सबर कर रहे है।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ