वो पुराने दिन..
वो पुराने दिन भी क्या दिन थे
जब दिन और रात एक से थे,
दिन में रंगीन सितारे चमकते,
रात सूरज की ऊष्मा में लिपटे बिताते।
फूल भी तब मेरे सपनों से रंग चुराते,
तितलियाँ भी इर्द गिर्द चक्कर लगातीं,
सारा रस जो मुझमें भरा था,
कुछ तुममें भी हिलोरें लेता।
कोरी हरी घास पर सुस्ताना,
मेरे बदन पर तुम्हारी बाहों का ताना बाना,
पतंग से आसमान में उङते,
एक दूसरे में सुलझते उलझते।
शाम की ठंडी बयार,
होकर मेरे दिल पर सवार,
छू आती थी लबों को तुम्हारे,
मेरे दिलो दिमाग़ पर रंगीन सी ख़ुमारी चढ़ाने।
रातों ने काली स्याही
थी मेरे ही काजल से चुराई,
जुगनु भी दिये जलाते,
मेरे नयनों की चमक चुरा के।
चाँद रोज़ मेरे माथे पर आ दमकता,
गुलाबी सा मेरा अंग था सजता,
सितारों को चोटी मे गूंथती
ओस की माला मै पहनती।
अरमानों की आग में हाथ सेंकते,
एक दूजे में यूँ उतरते,
तुम और मै के कोई भेद ना होते,
बस हम और सिर्फ हम ही होते।
एक ही रज़ाई में समाते,
भीतर चार हाथ चुहल करते,
तब मोज़े भी तुम्हारे ,
मेरे पैरों को थे गरमाते।
क्या सर्द, क्या गर्म,
हर चीज़ मानो मलाई सी, नर्म,
बस एक पुलिंदा भरा था हमारे प्यार का,
पर था वो लाखों और हज़ार का।
काश वो दिन फिर मिल जाते,
दीवाने से दिल कुछ यूँ मिल पाते,
कच्ची अमिया और नमक हो जैसे,
या गर्म चाशनी में डूबी, ठंडी सी गुलाबजामुन जैसे।
©मधुमिता