वो पत्थर याद आते हैं
तुम्हारे साथ गुजरे सारे मंजर याद आते हैं,
सफ़र वो याद आता है वो रहबर याद आते हैं।
निगाहों के इशारों से गिरायी बिजलियाँ दिल पर,
मिली नजरें जहां तुमसे दिनों-दर याद आते हैं।
अभी तो करवटों में ही गुजरती हैं हमारी शब,
कि हों बेचैन जब बाहों के बिस्तर याद आते हैं।
न सोचा था कभी हमने हमें तुम छोड़ जाओगे,
दिखाये ख्वाब जो तुमने हो बेघर याद आते हैं।
निगाहों ने निगाहों से लिया था मशविरा जब भी,
बिना बोले दिये तुमने जो उत्तर याद आते हैं।
अगर जो वार करना था हमारे सीने पे करते,
चुभोया पीठ में तुमने जो खंज़र याद आते हैं।
शराफ़त के सहारे अब गुजर हो किस तरह बोलो,
चुभे जो पाँव में बाग़ी वो पत्थर याद आते हैं।
#बाग़ी