वो पढ़ लेगा मुझको
(12)
सफ़र इश्क का मुश्किल बहुत है ।
कुछ तो नहीं, दर्द हासिल बहुत है ।
इज़हार-ए-उल्फ़त कर न सके जो ।
दिल ये हमारा बुज़दिल बहुत है ।।
तरसती हैं नींदे उसी को हमारी ।
खुशियों का मेरी जो कातिल बहुत है।
मैं ख़ामोशियों में छुप कर क्या देखूं ।
दो पढ़ लेगा मुझको कामिल बहुत है ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद