— वो पक्षी कहाँ चले गए ? —
” जब करीब मैं खुद , एक छोटी सी उम्र से गुजर रहा था, मन नटखट, परन्तु जिज्ञासा से भरा हुआ, कुछ न कुछ सोच में हमेशा डूबा हुआ सा, न जाने कब शून्य में पहुँच जाता था !
अपनों के बीच बैठा हुआ, अचानक से क्या देखता हूँ, एक काली सी प्यारी सी चिडिया , मेरे घर के आँगन में चू चू कर रही है , उस ने अनायास ही मेरे शून्य हुए मन को भौतिकता में ला दिया, और क्या देखा , कि उस की चोंच में घास फूस के तिनके पड़े हुए थे और वो जमीन पर गिरने से अपनी आवाज से संबोधित कर रही थी, पर कैसे उस को दिए जाएँ वो तिनके, यह समझ से बाहर था ! पर मैंने घर के सब सदस्य जो वहां बैठे हुए थे, उन से कहा, कि यहाँ से जगह छोड़ दो, ताकि वो चिडिया वो घास फूस के तिनके को उठा सके !
बस , ” फिर क्या था ” वो चिडिया आई , और अपनी चोंच में वो तिनके उठा कर, पास ही एक तार पर लपेटने लगी, कुछ समझ नही आया, कि वो क्या कर रही है, मेरी जिज्ञासा बढ़ने लगी, वो जितनी बार आती, तिनके साथ लेकर आती, और उनको लपेटने लग जाती, आखिर क्या करना चाहती थी, यह जिज्ञासा मन में हलचल मचने लगी !!
जब जब चिडिया आती, मेरा ध्यान उस की तरफ चला जाता, मुझ को अपना न पढने का ध्यान, न होम वर्क करने का ध्यान, बस उस के द्वारा किये जा रहे काम की तरफ ध्यान जाने लगा ! कुछ ही दिनों में उस नन्ही सी चिडिया ने अपना घौसला इतना अच्छा बना दिया, कि आज मैं भी सोचता हूँ, कि हाथ से बना कर कुछ करना कितना आसान है, पर अपनी चोंच से उस को तैयार करना कितना कठिन, उस चिडिया के लिए यह सब, कितना आसान काम था, जो उस ने घौसला अपनी पूरी लगन और मेहनत के साथ तैयार कर दिया !
फिर कुछ दिन गुजरे, तो मैंने देखा, उस घोंसले में से दो नन्हे नन्हे चिडिया के बच्चों की प्यारी प्यारी सी आवाज कानो को मन्त्र मुग्ध करने लगी ! चिडिया आती, कुछ न कुछ दाना लाती, उनकी चोंच में डाल कर फुर्र से उड़ जाती, यह नजारा मैं काफी दिन तक देखता रहा, जैसे आदत सी हो गयी ! मुझ को भी इन्तेजार रहने लगा , कब चिडिया आये, दाना लाये, उनको खिलाये !
वो समय भी पास आते देखा, एक दिन वो जब नन्हे नन्हे पक्षी बड़े होकर , उस घोंसले के भीतर से बाहर झांकते थे…मन को सकून देने लगे, अपनी माँ से लेकर दाना झट से खाने लगे, बड़ा प्यारा सा लगता था, मुझ को जब मेरी नजर में वो प्यार से माँ के साथ ममता भरी निगाह से देखते थे. देखते देखते वो भी अपनी माँ के साथ उस घौंसले को विदा कर गए , न जाने किस दिशा में चले गए, पर मेरे मन की जिज्ञासा को फिर से शून्य में परिवर्तित कर के आसमान में कहीं उड़ गए, पक्षिओं के ममतामयी प्यार को देखकर , सच मन को सकून तो मिला ही, कि आखिर एक माँ ही होती है, जिस को अपने बच्चों के दुःख दर्द का पता होता है ! कब उनको दाना देना है, कब उनके साथ पास आकर अपना प्यार बांटना होता है !
इंसान की जिन्दगी में यह छोटी छोटी सी बातें, शिक्षा प्रद बन जाती हैं, और तो और आज के जीवन में ममता तो है, पर बच्चों के प्यार , बच्चों का साथ बहुत भाग्यशाली माता पिता को मिल पाता है, जबकि एक पक्षी की तरफ सब पैदा होते हैं , नन्हे नन्हे क़दमों से चलना सीखते हैं, अच्छी परवरिश के बाद, न जाने आसमान की किस दिशा में इन परिंदों की भांति उड़ जाते हैं , और छोड़ जाते हैं, माता पिता की आँखों में आँसू और इन्तेजार !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ