वो दो साल जिंदगी के (2010-2012)
ओ छोटा शहर पर जगह बडी,
फैजाबाद की हनुमान गढी,,
वहीं शान्ति और शुकूं से विलग
कौतुहलयुक्त अपना बसेरा,,
‘ओ दो साल जिन्दगी के….
कुछ कुशलताऎं थी गढनी बाकी,
‘वही रची जा रहीं थीं,,
नजदीक ही हेक्सागोनल आनन वाले की चाय की ढाबली,
पूरा कुटुम्ब होमोलोगस सिरीज विलगाते,
जिसे निहारते ही आर्गेनिक केमिस्ट्री याद आ जाती,
कुछ शुकूं के पल वहाँ मिल जाते,
बाबा आदम के जमाने का रेडियो,
जो बस विबिध भारती सुना पाता
अयोध्या में मन्दिर-महजिद मुद्दा जो चल रहा था
देश भर के हर राज्यों की पुलिसों का जमावडा था शहर में,
पूरा शहर पुलिस छावनी बना था,
हर व्यक्ति शंका के आयाम मे होता,,
वैसे तो ये कोई मुद्दा नही था,
पर सरकारें बनती और विगडती थीं
राम मंदिर निर्माण के आश्वासन पर।
मामला कोर्ट में था और कोर्ट पर सर्वसम्मति का विश्वास
लोगों का विरोध जायज था बाबरी मस्जिद का ढाँचा जो ढ़हाया गया था,
हालांकि देश मे मंदिरों को बहुत लुटा गया था
मंदिरे बहुत ढहाई गयीं मुगलकाल और उस से पहले भी,
पर राम मंदिर निर्माण पर राजनीति ज्यादा हुई, उतना विरोध नहीँ|
रामलला तो सबको प्यारे, हर धर्म और समुदाय के न्यारे|
फिलहाल कोर्ट का फैसला अभी आना था।
इन सब से परे इक विलगित आशियाना था अपना
होस्टल और यूनिवर्सिटी कैम्पस से ज्यादा वक्त सारे बैचमेट्स नाके और
हमारे रूम पर बिताते थे,
कहते हैं किताबों से ज्यादा परिस्थितियां सिखा देती हैं
और उन से भी ज्यादा कुछ लोग
कुछ व्यक्त्वि से वाकिफ हुआ,,
सबके नाम उच्चारित करना
बामस्कत है,,
किसी का तर्क,किसी के विचार तो किसी की कर्मठता अविस्मरणीय है,,
अब तो जिन्दगी अजीब कशमकश में है,
हर राह अन्जानी,हर लोग अजनबी,
फिर भी याद आते हैं,,
ओ दो साल जिन्दगी के ।