वो तेरी गुफ्तगू
वो तेरी गुफ्तगू वो तेरा आँखें लड़ाना
मुझे देखकर दुपटटे से यूँ मुँह छुपाना
याद आता मुझकों सनम आज भी ये
वो तेरा चोरी चोरी छत पे मुझे बुलाना
मैं हैरत रहता था कि कैसा इश्क़ हुआ
तेरे कहतें ही क्यों मेरा यूँ ही आ जाना
कुछ कहूँ अपना किस्सा तो बदनामी है
बेहोश हुआ हूँ होश में ना आये दीवाना
ऐ अहले जमाना कद्र कर मेरे इश्क की
जब भूल जाऊँ उसे तो तुम याद दिलाना
डर लगता कि मर ना जाऊँ कही आज मैं
ख़ंजर उठाकर मेरे क़त्ल की उसने है ठाना
दिल चुराकर तेरी तीरछी नज़र ले गई थी
उसपर तेरा मुझे अपनी नजरों से पिलाना